15 अगस्त को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देश के सामने जो पांच PRAN लिए थे, उनमें से एक संकल्प था – गुलामी की सभी निशानियों को ख़त्म करना – आज के तीन विधेयक श्री मोदी के इस एक संकल्प को पूरा करने जा रहे हैं
आज हम अंग्रेजों द्वारा अधिनियमित और ब्रिटिश संसद द्वारा पारित भारतीय दंड संहिता, 1860, दंड प्रक्रिया संहिता, (1898), 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को निरस्त करके 3 नए विधेयक लाए हैं।
भारतीय दंड संहिता, 1860 को भारतीय न्याय संहिता विधेयक, 2023 द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा, आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1898 को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2023 द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को भारतीय साक्ष्य विधेयक द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा। 2023
ये तीन निवर्तमान कानून ब्रिटिश शासन को मजबूत करने और उसकी रक्षा करने के लिए बनाए गए थे और इनका उद्देश्य न्याय देना नहीं बल्कि दंड देना था
तीन नए कानूनों की आत्मा भारतीय नागरिकों को संविधान द्वारा दिए गए सभी अधिकारों की रक्षा करना होगा और, उनका उद्देश्य दंड देना नहीं बल्कि न्याय देना होगा
भारतीय विचारधारा से बने ये तीन कानून हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली में बहुत बड़ा बदलाव लाएंगे
मोदी सरकार शासन की जगह नागरिकों को केंद्र में लाने का बेहद सैद्धांतिक फैसला लेते हुए यह कानून लेकर आई है
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में कहा था, सभी विभागों में अंग्रेजों के समय बने सभी कानून, पर्याप्त चर्चा और विचार-विमर्श के बाद आज के समय के अनुसार और भारतीय समाज के हित में बनाये जाने चाहिए।
18 राज्य, 6 केंद्र शासित प्रदेश, सुप्रीम कोर्ट, 16 हाई कोर्ट, 5 न्यायिक अकादमियां, 22 कानून विश्वविद्यालय, 142 संसद सदस्य, लगभग 270 विधायक और जनता ने इन नए कानूनों पर अपने सुझाव दिए हैं।
गृह मंत्री ने कहा, 4 साल तक इन कानूनों पर गहन चर्चा हुई और 158 परामर्श बैठकों में वह खुद मौजूद रहे
सीआरपीसी की जगह लेने वाले भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक में अब 533 धाराएं हैं, पुराने कानून की 160 धाराएं बदली गई हैं, 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 9 धाराएं निरस्त की गई हैं
भारतीय दंड संहिता की जगह लेने वाले भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023 में पहले की 511 धाराओं की जगह 356 धाराएं होंगी, 175 धाराएं बदली गई हैं, 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 22 धाराएं निरस्त की गई हैं
साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले भारतीय साक्ष्य विधेयक में अब 167 की जगह 170 धाराएं होंगी, 23 धाराएं बदली गई हैं, 1 नई धारा जोड़ी गई है और 5 निरस्त की गई हैं
इन तीन पुराने कानूनों में गुलामी के निशान थे, इन्हें ब्रिटिश संसद ने पारित किया था, आज हम कुल 475 स्थानों से गुलामी के इन निशानों को हटाकर नए कानून लेकर आए हैं।
कानून इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड, ई-मेल, सर्वर लॉग, कंप्यूटर, स्मार्ट फोन, लैपटॉप, एसएमएस, वेबसाइट, स्थानीय साक्ष्य, मेल, उपकरणों पर संदेश को शामिल करने के लिए दस्तावेजों की परिभाषा का विस्तार करता है।
इस कानून में एफआईआर से लेकर केस डायरी, केस डायरी से लेकर आरोप पत्र और आरोप पत्र से लेकर फैसले तक की पूरी प्रक्रिया को डिजिटल बनाने का प्रावधान किया गया है।
तलाशी और जब्ती के समय वीडियोग्राफी अनिवार्य कर दी गई है जो केस का हिस्सा होगी और इसमें निर्दोष नागरिकों को नहीं फंसाया जाएगा, पुलिस द्वारा ऐसी रिकॉर्डिंग के बिना कोई भी आरोप पत्र मान्य नहीं होगा
प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने दोषसिद्धि अनुपात को बढ़ाने के लिए फोरेंसिक विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय स्थापित करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया।
तीन साल बाद हर साल देश में 33,000 फोरेंसिक साइंस विशेषज्ञ और वैज्ञानिक उपलब्ध होंगे, कानून में सजा का अनुपात 90% से ऊपर ले जाने का लक्ष्य रखा गया है
7 वर्ष या उससे अधिक की सजा का प्रावधान वाले अपराधों में घटनास्थल पर फॉरेंसिक टीम का दौरा अनिवार्य किया जा रहा है, इससे पुलिस के पास वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध होंगे, जिसके बाद अदालत में दोषियों के बरी होने की संभावना बढ़ जायेगी. बहुत कम हो
मोदी सरकार आजादी के 75 साल बाद पहली बार नागरिकों की सुविधा के लिए जीरो एफआईआर शुरू करने जा रही है, इस पहल से नागरिक अपने थाना क्षेत्र के बाहर भी शिकायत दर्ज करा सकेंगे
ई-एफआईआर का प्रावधान पहली बार जोड़ा जा रहा है, प्रत्येक जिला और पुलिस स्टेशन एक पुलिस अधिकारी को नामित करेगा जो गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार को उसकी गिरफ्तारी के बारे में आधिकारिक तौर पर ऑनलाइन और व्यक्तिगत रूप से सूचित करेगा।
यौन हिंसा के मामलों में पीड़िता का बयान अनिवार्य कर दिया गया है और यौन उत्पीड़न के मामलों में बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग भी अनिवार्य कर दी गई है
पुलिस को 90 दिन में शिकायत की स्थिति और उसके बाद हर 15 दिन में शिकायतकर्ता को जानकारी देना अनिवार्य होगा।
कोई भी सरकार 7 साल या उससे अधिक की सजा के मामले को पीड़ित की बात सुने बिना वापस नहीं ले सकेगी, इससे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा होगी
छोटे-मोटे मामलों में समरी ट्रायल का दायरा बढ़ा दिया गया है, अब अपराध में 3 साल तक की सजा होगी