नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने विश्व हाइड्रोजन शिखर सम्मेलन 2025 में नवीकरणीय ऊर्जा और हरित हाइड्रोजन में भारत की दूरदर्शिता और क्षमताओं पर प्रकाश डाला

भारत सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के सचिव श्री संतोष कुमार सारंगी ने आज रोटरडैम में विश्व हाइड्रोजन शिखर सम्मेलन 2025 को संबोधित किया, जिसमें उन्होंने नवीकरणीय ऊर्जा और हरित हाइड्रोजन उत्पादन के क्षेत्र में भारत की रणनीतिक दूरदर्शिता और क्षमताओं पर प्रकाश डाला।
सचिव ने इस क्षेत्र में विश्व गुरू बनने के लिए हरित हाइड्रोजन की भारत की परिवर्तनकारी संभावना को रेखांकित किया। यह महत्वाकांक्षा काफी हद तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में भारत की ताकत पर निर्भर करती है।
सचिव ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत ने पहले ही 223 गीगावाट से अधिक अक्षय ऊर्जा स्थापित कर ली है – जिसमें सौर ऊर्जा से 108 गीगावाट और पवन ऊर्जा से 51 गीगावाट शामिल है – जो भारत को वैश्विक स्तर पर सबसे तेजी से बढ़ते अक्षय ऊर्जा बाजारों में से एक बनाता है। उन्होंने 2047 तक ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त करने और 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक पहुँचने के भारत के दृष्टिकोण को दोहराया।
इस परिवर्तन को आगे बढ़ाने के लिए, सरकार ने 2023 में 2.4 बिलियन अमरीकी डॉलर के शुरुआती आवंटन के साथ राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन शुरू किया। यह निम्नलिखित के लिए एक व्यापक रोडमैप तैयार करता है:
  • संभावित क्षेत्रों में मांग की पहचान करना और उसे बनाना
  • घरेलू क्षमता स्थापित करने के लिए उत्पादन प्रोत्साहन प्रदान करना
  • 2030 तक 5 मिलियन मीट्रिक टन हरित हाइड्रोजन उत्पादन प्राप्त करना,
  • सालाना लगभग 50 एमएमटी कार्बनडाइक्‍साइड उत्सर्जन को रोकना।
  • लगभग 100 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश आकर्षित करना।
  • 600,000 से अधिक नौकरियाँ पैदा करना।
सचिव ने आगे बताया कि भारत ने हरित हाइड्रोजन विकास में उल्लेखनीय प्रगति की है। देश ने 19 कंपनियों को सालाना 862,000 टीपीए उत्पादन क्षमता आवंटित की है, और 15 फर्मों को 3,000 मेगावाट वार्षिक इलेक्ट्रोलाइज़र विनिर्माण क्षमता प्रदान की है, और हमने इस्पात, गतिशीलता और शिपिंग क्षेत्रों में पायलट परियोजनाएँ शुरू की हैं।
भारत की ग्रीन हाइड्रोजन प्रमाणन योजना हाल ही में शुरू की गई है। मिशन सरकार के समग्र दृष्टिकोण पर काम कर रहा है और नवजात लेकिन तेजी से बढ़ते घरेलू ग्रीन हाइड्रोजन उद्योग का समर्थन करने के लिए प्रमुख नीतिगत प्रावधान किए गए हैं। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया संयंत्रों को पर्यावरणीय मंजूरी से छूट दी है। इसे आगे बढ़ाने के लिए पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय (एमओपीएसडब्ल्यू) द्वारा कांडला, पारादीप और तूतीकोरिन बंदरगाहों जैसे तीन प्रमुख बंदरगाहों की पहचान की गई है, जिन्हें ग्रीन हाइड्रोजन केन्द्रों के रूप में विकसित किया जाएगा। इसके अलावा, 15 राज्यों ने ग्रीन हाइड्रोजन का समर्थन करने के लिए नीतियों की घोषणा की है। ये प्रभावी कदम भारत को ग्रीन हाइड्रोजन क्षेत्र में वैश्विक नेता के रूप में मजबूती से स्थापित करते हैं, लेकिन उच्च उत्पादन लागत, मानकीकृत रूपरेखाओं की कमी और बुनियादी ढांचे की सीमाओं जैसी चुनौतियाँ हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में बाधा बनती हैं।
सचिव ने ग्रीन हाइड्रोजन शिखर सम्मेलन 2025 में भाग लेने वाले प्रतिनिधियों को अगले दो दिनों के दौरान भारतीय मंडप का दौरा करने और साझेदारी की संभावना तलाशने के लिए भारतीय उद्योगों के साथ बातचीत करने के लिए आमंत्रित किया।
सचिव के मुख्य भाषण से पता चला कि भारत का लक्ष्य न केवल अपनी घरेलू मांग को पूरा करना है, बल्कि 2030 तक हरित हाइड्रोजन का एक प्रमुख वैश्विक निर्यातक बनना है – जो डीकार्बोनाइजेशन कार्य में सार्थक योगदान देगा।
राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन भारत सरकार की एक प्रमुख पहल है, जिसका उद्देश्य भारत में हरित हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों का विकास और उसे अपनाने को बढ़ावा देना है। 2030 तक 5 मिलियन टन वार्षिक हरित हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता स्थापित करने के लक्ष्य के साथ, यह मिशन हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था में भारत की महत्वाकांक्षाओं को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सरकार ने इस संबंध में पर्याप्त प्रगति की है, जिसने प्रति वर्ष कुल 862,000 टन हरित हाइड्रोजन उत्पादन में सहयोग करने के लिए प्रोत्साहनों के लिए निविदाएँ प्रदान की हैं। इसके अतिरिक्त, 3,000 मेगावाट प्रति वर्ष की इलेक्ट्रोलाइज़र विनिर्माण क्षमता की स्थापना के लिए निविदाएँ प्रदान की गई हैं, जिससे भारत की हरित हाइड्रोजन का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने की क्षमता को और बढ़ावा मिलेगा।
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