“पशु चिकित्सक ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं”: प्रो. एसपी सिंह बघेल ने पशुधन क्षेत्र में मजबूत पशु चिकित्सा बुनियादी ढांचे और कौशल में वृद्धि का आह्वाह्न किया
स्वदेशी नस्लों, 100 प्रतिशत आईवीएफ अपनाने और एफएमडी उन्मूलन में पशु चिकित्सा की भूमिका बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है: प्रो. एसपी सिंह बघेल
मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत पशुपालन और डेयरी विभाग ने 27 अप्रैल को नई दिल्ली में भारत की पशुधन अर्थव्यवस्था के मूक प्रहरी को श्रद्धांजलि देते हुए, एक राष्ट्रीय कार्यशाला के साथ विश्व पशु चिकित्सा दिवस 2025 मनाया।
इस कार्यक्रम का उद्घाटन केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी तथा पंचायती राज राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने किया। उन्होंने पशु चिकित्सा समुदाय को “ग्रामीण अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय जैव सुरक्षा की रीढ़” बताया। उन्होंने कहा कि भारत में 536 मिलियन से अधिक पशुधन हैं, जो दुनिया में सबसे अधिक है और लगभग 70 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों की आय, भोजन और सुरक्षा के लिए पशुओं पर निर्भर हैं। फिर भी, जो लोग सुनिश्चित करते हैं कि ये पशु स्वस्थ रहें, वे शायद ही कभी सुर्खियों में आते हैं। केंद्रीय राज्य मंत्री ने अपने संबोधन में कहा, “स्वस्थ पशुओं के बिना स्वस्थ भारत की संभावना नहीं है।” उन्होंने पशु चिकित्सा बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण, कौशल विकास को बढ़ाने और भारत की पशु स्वास्थ्य प्रणालियों को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता पर बल दिया। इस वर्ष का विषय, “पशु स्वास्थ्य के लिए एक टीम की आवश्यकता होती है” उन्होंने इस विषय पर प्रकाश डालते हुए, एकीकृत पशु, मानव और पर्यावरणीय स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए पशु चिकित्सकों, पैरा-पशु चिकित्सा कर्मचारियों, वैज्ञानिकों और सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवरों के बीच सहयोगी प्रयासों के महत्व पर बल दिया। प्रो. बघेल ने राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनएडीसीपी) जैसी प्रमुख पहलों पर प्रकाश डाला। इसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक खुरपका और मुंहपका रोग (एफएमडी) को समाप्त करना है। उन्होंने बताया कि देश में अब तक 114.56 करोड़ से अधिक एफएमडी टीके और 4.57 करोड़ ब्रुसेलोसिस टीके लगाए जा चुके हैं। एनएडीसीपी का लक्ष्य वर्ष 2025 तक एफएमडी को नियंत्रित करना और टीकाकरण के माध्यम से वर्ष 2030 तक इसे समाप्त करना है।
प्रो. एसपी सिंह बघेल ने देश के पशुपालन क्षेत्र को मजबूत बनाने में पशुधन की देशी नस्लों की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया। उन्होंने कहा कि ये नस्लें न केवल स्थानीय जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल हैं, बल्कि टिकाऊ और लचीली पशुधन उत्पादन प्रणाली सुनिश्चित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। प्रो. बघेल ने उन्नत प्रजनन तकनीकों को अपनाने, विशेष रूप से सेक्स-सॉर्टेड वीर्य का उपयोग, उत्पादकता और नस्ल की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के 100 प्रतिशत उपयोग को प्राप्त करने का लक्ष्य प्राप्त करने के महत्व पर बल दिया। केंद्रीय राज्य मंत्री ने रोग का पता लगाने की क्षमता और निगरानी के लिए राष्ट्रीय डिजिटल पशुधन मिशन (भारत पशुधन) जैसे डिजिटल मंचों के उपयोग की प्रशंसा की। उन्होंने जूनोटिक रोगों के बढ़ते खतरे का समाधान करते हुए, भारत की एक स्वास्थ्य परिकल्पना को अपनाने पर बल दिया।
पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) की सचिव सुश्री अलका उपाध्याय ने राष्ट्रीय कार्यशाला में वर्चुअल माध्यम से सम्मिलित होते हुए भारत के पशु चिकित्सा इकोसिस्टम के व्यापक सुधार का आह्वान किया। उन्होंने विश्व पशु चिकित्सा दिवस 2025 के कार्यक्रम में बोलते हुए इस बात पर बल दिया कि पशु चिकित्सकों ने पशुधन उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिससे भारत विश्व स्तर पर सबसे बड़ा डेयरी उत्पादक, टेबल अंडा उत्पादन में दूसरा और चौथा सबसे बड़ा मांस उत्पादक बन गया है। सचिव महोदया ने देश भर में पशु चिकित्सा पेशेवरों की तीव्र कमी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत आईवीएफ, सेक्स-सॉर्टेड वीर्य, मवेशी टीकाकरण और डेयरी उपकरण निर्माण जैसी उन्नत तकनीकों में आत्मनिर्भर बन गया है। उन्होंने पशु चिकित्सा शिक्षा सीटों में वृद्धि, पशु चिकित्सा महाविद्यालयों में अत्याधुनिक सुविधाओं की स्थापना और विद्यार्थियों के लिए सर्जरी और पशुधन चिकित्सा देखभाल में व्यावहारिक विशेषज्ञता प्रदान करने वाले पाठ्यक्रम शुरू करने का आग्रह किया। सुश्री अलका उपाध्याय ने जूनोटिक बीमारियों के बढ़ते खतरे का समाधान करते हुए, राज्यों में एक मजबूत निगरानी प्रणाली, समन्वित टीकाकरण कार्यक्रमों की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने अपने संबोधन के समापन में कहा, “पशु चिकित्सक राष्ट्रीय जैव सुरक्षा सुनिश्चित करने में रक्षा की पहली पंक्ति हैं।”
खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के सहायक महानिदेशक और प्रमुख पशुचिकित्सक डॉ. थानावत तिएनसिन ने रोम से वर्चुअल माध्यम से शामिल होते हुए वैश्विक एक स्वास्थ्य प्रयासों में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका की प्रशंसा की और पशु स्वास्थ्य तैयारी के लिए महामारी कोष के अंतर्गत देश को हाल ही में मिली मान्यता की प्रशंसा की, जो पशु चिकित्सा सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में भारत के नेतृत्व की एक प्रमुख वैश्विक उपस्थिति है।
पशुपालन आयुक्त और भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. अभिजीत मित्रा ने अपने संबोधन में सामूहिक टीकाकरण अभियान, रोग का शीघ्र पता लगाने और पशु स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के लिए डिजिटल निगरानी प्रणाली के उपयोग में भारत की प्रगति पर प्रकाश डाला। उन्होंने खाद्य प्रणालियों के अदृश्य रक्षक और भविष्य की महामारियों के विरुद्ध महत्वपूर्ण रक्षक के रूप में पशु चिकित्सकों की भूमिका पर बल दिया। उन्होंने पशु कल्याण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के बीच महत्वपूर्ण संबंध की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि पशु कल्याण केवल करुणा का कार्य नहीं है, बल्कि खाद्य सुरक्षा और स्वस्थ पशुधन सुनिश्चित करने के लिए एक बुनियादी स्तंभ है।
विश्व पशु चिकित्सा दिवस 2025 का इस वर्ष का वैश्विक विषय “पशु स्वास्थ्य एक टीम लेता है” है , जो इस विचार को रेखांकित करता है कि पशु स्वास्थ्य एक एकल मिशन नहीं है; यह पशु चिकित्सकों, वैज्ञानिकों, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों और किसानों को शामिल करने वाला एक सामूहिक राष्ट्रीय प्रयास है। इस कार्यक्रम ने पशु स्वास्थ्य की रक्षा में सहयोग की शक्ति पर प्रकाश डाला, यह पहचानते हुए कि पशु चिकित्सक, वैज्ञानिक, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और किसान एक अन्योन्याश्रित नेटवर्क बनाते हैं जो न केवल पशुधन बल्कि राष्ट्र के स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था की सुरक्षा करता है। कार्यशाला में पशुपालन में जेनेरिक दवाओं के उपयोग से पहुंच और सामर्थ्य में सुधार, एवियन इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारियों के जूनोटिक संचरण को रोकने में पशु चिकित्सक की भूमिका , एकीकृत रोग निगरानी को मजबूत करना और मानव तथा पशु स्वास्थ्य क्षेत्रों के बीच डेटा साझाकरण के साथ-साथ एक आकर्षक ऑनलाइन राष्ट्रीय प्रश्नोत्तरी पर उच्च प्रभाव वाले तकनीकी सत्र शामिल थे।
इस कार्यक्रम में डीएएचडी की अतिरिक्त सचिव सुश्री वर्षा जोशी, डीएएचडी के अपर सचिव डॉ. रमाशंकर सिन्हा के साथ-साथ आईसीएआर, राष्ट्रीय पशु चिकित्सा परिषदों, एफएओ, डब्ल्यूओएएच, डब्ल्यूएचओ के अन्य वरिष्ठ अधिकारी और राष्ट्रीय शोध संस्थानों के निदेशक तथा कई पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयों के कुलपतियों सहित कई प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्तियों और हितधारकों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम में 250 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया और पूरे भारत में इसका सीधा प्रसारण किया गया, जिसमें पशु चिकित्सा पेशेवरों, विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं और किसानों सहित 3,000 से अधिक लोग वर्चुअल माध्यम से उपस्थित हुए, जो पशु स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती सार्वजनिक जागरूकता और रुचि को प्रदर्शित करता है।
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