आतंकवाद अब सहन नहीं किया जाएगा, यह किसी एक देश की नहीं, बल्कि पूरे विश्व की चिंता का विषय है : उपराष्ट्रपति
भारत ने पहली बार राजस्थान की धरती पर पोखरण के माध्यम से अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया : उपराष्ट्रपति
अब ब्रह्मोस और आकाश की शक्ति को वैश्विक स्तर पर स्वीकार किया जा रहा है : उपराष्ट्रपति
भैरों सिंह शेखावत उस वटवृक्ष की तरह थे, जिसकी छाया में सब कुछ पुष्पित और पल्लवित हुआ : उपराष्ट्रपति
भैरों सिंह शेखावत का दिल और दिमाग हमेशा आम आदमी के साथ रहा : उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने जयपुर में भैरों सिंह शेखावत स्मृति पुस्तकालय का उद्घाटन किया
भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज कहा, “मैं आज सबसे पहले भारतीय सेना के पराक्रम को नमन करता हूं। विश्व स्तर पर एक नया मानदंड स्थापित किया गया है। शांति के भाव को बनाए रखते हुए, आतंकवाद पर सटीक प्रहार करना हमारा उद्देश्य रहा है। पहली बार, अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार जाकर जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के ठिकानों पर सटीक प्रहार किया गया — और दुनिया में किसी ने प्रमाण नहीं मांगा। पूरी दुनिया ने भारत की शक्ति को देखा। भारत ने एक सशक्त संदेश दिया है — अब एक बड़ा बदलाव आया है। आतंकवाद अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, क्योंकि यह किसी एक देश का नहीं, पूरी दुनिया का विषय है।”
जयपुर में भैरों सिंह शेखावत स्मृति पुस्तकालय का उद्घाटन करते हुए श्री धनखड़ ने कहा, “भारत ने केवल सैन्य मोर्चे पर नहीं, प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक बड़ी कूटनीतिक लड़ाई भी लड़ी है और उसे जीत भी लिया है। सिंधु जल संधि को रोका गया। देश और दुनिया को यह संदेश दिया गया — जब तक भारत के दृष्टिकोण से हालात सामान्य नहीं होते, तब तक पुनर्विचार नहीं होगा। यह एक ऐसा ऐतिहासिक कदम था, जिसकी पहले न तो कल्पना की गई थी, और न ही उस पर विचार हुआ था।”
राजस्थान की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का स्मरण करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “राजस्थान की इस वीर भूमि से — महाराणा प्रताप की भूमि, महाराजा सूरजमल की भूमि से — मैं उन सभी को नमन करता हूं जिन्होंने देश की रक्षा की और हमारी पहचान को सुरक्षित रखा।”
भारत की शक्ति के प्रदर्शन पर बात करते हुए उन्होंने कहा, “भारत ने पहली बार मई महीने में पोखरण के माध्यम से राजस्थान की धरती पर अपनी ताकत का परिचय दिया। उस समय श्री अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे और माननीय भैरों सिंह शेखावत राजस्थान के मुख्यमंत्री। तब हमने एक बड़ा मील का पत्थर हासिल किया। जब पहलगाम में उकसावे की घटना हुई, तब भारत की ताकत को दुनिया पहले ही पहचान चुकी थी। हम अपनी अर्थव्यवस्था में एक बड़ी छलांग लगा चुके थे। आज हम विश्व की चौथी सबसे बड़ी शक्ति हैं और तीसरे स्थान की ओर अग्रसर हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “जब प्रधानमंत्री को लगा कि भारत की पहचान को चुनौती दी जा रही है, उन्होंने बिहार की धरती से दुनिया को एक संदेश दिया — और उस पर दृढ़ता से टिके रहे। दुनिया ने देखा कि हमारे आकाश का क्या अर्थ है। दुनिया ने ब्रह्मोस का अर्थ समझा। आज यह शक्ति वैश्विक रूप से स्वीकार की जा चुकी है।”
अपने जीवन के दो पथ-प्रदर्शकों को स्मरण करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “मेरे जीवन में दो व्यक्तित्वों का विशेष महत्व रहा है — माननीय भैरों सिंह शेखावत और चौधरी देवी लाल जी। दोनों का धरती से गहरा जुड़ाव था और आमजन से मजबूत संबंध। दोनों के जीवन निष्कलंक थे और उन्होंने राजनीति में एक महान परंपरा को पोषित किया। मैं तो उस वटवृक्ष का एक छोटा सा पत्ता हूं।”
एक व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा, “भैरों सिंह शेखावत का दिल और दिमाग हमेशा आम आदमी के साथ था। मैंने एक भावनात्मक चित्र देखा — जिसमें माननीय चंद्रशेखर जी, नानाजी देशमुख, जयप्रकाश नारायण और भैरों सिंह शेखावत जी थे — और वह उन्हें अंत्योदय की अवधारणा समझा रहे थे। उन्होंने इसकी शुरुआत की थी।”
श्री धनखड़ ने भैरों सिंह शेखावत के संसदीय पारदर्शिता में ऐतिहासिक योगदान की सराहना की: “राज्यसभा के सभापति के रूप में भैरों सिंह शेखावत जी — एक प्रखर व्यक्तित्व — ने पारदर्शिता में एक नया मानदंड स्थापित किया। उन्होंने सभी सांसदों को अपनी संपत्ति की घोषणा करने के लिए बाध्य किया। यह पहल माननीय भैरों सिंह जी ने ही शुरू की थी। यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण शुरुआत थी।”
अपने संबोधन के समापन में उपराष्ट्रपति ने भैरों सिंह शेखावत जी के गरिमामयी राजनीतिक आचरण और नेतृत्व का स्मरण करते हुए कहा, “दुनिया के किसी भी कोने, देश या प्रदेश में ढूंढ लीजिए — उनका कोई दुश्मन नहीं मिलेगा। उन्होंने राजनीति में यह महत्वपूर्ण बात परिभाषित की कि राजनीति में कोई दुश्मन नहीं होता। आज के नेतृत्व को — हर राजनीतिक दल में — उनसे यह सीखने की आवश्यकता है: उन्होंने जो उच्चतम मापदंड स्थापित किए — अभिव्यक्ति, संवाद, वाद-विवाद, मंथन और यदि मैं वैदिक भाषा में कहूं तो ‘अनंतवाद’ (विचारों की असीम स्वीकृति) — वह किसी भी व्यवस्था, विशेष रूप से लोकतंत्र में, अनिवार्य हैं।”
विपक्ष के सदस्य के रूप में अपने अनुभव को साझा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “मैंने इसे स्वयं देखा है — पाँच वर्षों तक वह राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे और मैं विपक्ष का विधायक था। उनका दिल विपक्ष के लिए पसीजता था। विपक्ष के हर सदस्य को यह अनुभव होता था कि मुख्यमंत्री हमारे संरक्षक हैं। यदि हम कोई उचित और जायज़ बात रखते, तो वह हमेशा सकारात्मक प्रतिक्रिया देते।”